इतिहास पीर निगाहा - ऊना

Darbar Peer Nigaha - UNA सखी सरवर, लखदाता जी के बहुत मुरीद हुए है उनमें से एक मुरीद हुए है हिमाचल प्रदेश, जिला उना, सैली गॉव के निगाहीया जी । जो की कुष्ठ रोग से पीड़ित थे ।

कुष्ठ रोगी होने के कारण परिवार वाले निगाहीया जी से नफ़रत करने लगे की कहीं यह रोग बाकी परिवार को न हों जाये इसलिए उनका रहना, खाना - पीना सब कुछ परिवार से अलग कर दिया । निगाहीया जी इस बात से बहुत दुखी थे एक दिन उन्होंने सोचा की अगर मैं यहाँ से कही चला जाऊं तो अवश्य परिवार वाले चिंता मुक्त हो जायेगें । ये सोच कर निगाहीया जी घर से निकल पड़े । रास्ते में उन्हें कुछ लोग मिले, जो नाचते - गाते ढोल बजाते हुए जा रहे थे । निगाहीया जी ने उनसे पूछा भाई आप लोग कहा जा रहे हो, तो उन्होंने कहा हम अपने पीर सखी सरवर लखदाता जी के दरबार पीर निगाहें (अब पाकिस्तान) जा रहे है वो सब की मनो कामना पूरी करते है । निगाहीया जी ने उन्हें कुछ पैसे दे कर कहा, मेहरबानी करके मेरी यह भेंट पीर लखदाता जी के दरबार में चढ़ा देना और मैं कुष्ठ रोग से मुक्त हो जाऊं ऐसी फ़रियाद मेरी तरफ से जरुर कर देना । हो सकता है लखदाता जी मेरे ऊपर कृपा करे और मैं भी कुष्ठ रोग से मुक्त हो जाऊं । लखदाता जी की कुदरत, वहीं पास खड़े एक बेऔलाद दंपत्ति ने यह सारा वार्तालाप सुना । घर जा कर उन्होंने आपस में विचार किया और लखदाता जी के आगे फ़रियाद की - हे पीरों के पीर लखदाता जी हम बेऔलाद हैं अगर आप हमें औलाद का सुख दे तो हम सदा के लिए आप के मुरीद हो जायेंगे और सारी उम्र आपकी सेवा करेंगे ।

Darbar Roza Sharif - Peer Nigaha Una दूसरी तरफ कुष्ठ रोगी निगाहीया लखदाता जी का ध्यान करने लगे । एक दिन निगाहीया जी अपनी समाधि में बैठे थे की उन्हे एक आवाज सुनाई दी । " निगाहीया आँखें खोल और देख तेरे सामने कौन खड़ा है " । जब निगाहीया जी ने आँखें खोली तो खुली की खुली रह गई क्या देखता है की पीर लखदाता जी अपनी कक्की घोड़ी पर सवार उस के सामने खड़े है । लखदाता जी ने कहा निगाहीया तेरी सच्ची सेवा और प्यार से हम बहुत खुश हुए तू हमारे बड़े पीर निगाहें नहीं आ सकता था इसलिए तुझे दर्शन देने हम यहीं चले आये । निगाहीया लखदाता जी को बस निहारे जा रहा था फिर बेनती की और कहा - हे पीरों के पीर मेरे लखदाता जी मेरी सच्ची सरकार जी आप का लाख - लाख शुक्र की आप मुझ जैसे पापी, कुष्ठ रोगी को दर्शन देने यहाँ चले आये यह कहते हुए निगाहीया जी की आँखें भर आई । तब लखदाता जी ने वचन किया की निगाहीया घबरायो नहीं यह सब तुम्हारे बुरे कर्मों का फल है जिस की सजा तुम भुगत रहे हो । तुम बहुत नेक इंसान और मेरे मुरीद थे इसीलिए खुदा ने तुम्हें दुनिया की हर ख़ुशी दी और तू मोह माया के जाल में फंस कर खुदा को ही भूल गया बस यही तेरी गलती है जिस की तू सजा भुगत रहा है । अब तुम घबरायो नहीं तुम फिर से अपने असली मार्ग पर आ गए हो और सब कुछ ठीक हो जायेगा । लखदाता जे ने निगाहीया को हुकम देते हुए वचन किया " निगाहीया यहीं पास में गुफाएं है जो पांडवों ने बनाई थी, उन गुफाओं की सफाई करो और वहीं पर हमारे नाम के चिराग रोशन करो और धुप - बत्ती कर के हमारी भक्ति करो । जब भी तुम हमें याद करोगे हम हाज़िर हो जायेंगे "। यह वचन करके लखदाता जी आलोप हो गए ।

लखदाता जी का हुकम मान कर निगाहीया जी ने गुफा की साफ़ - सफाई की और अपने पीर लखदाता जी की सेवा में जुट गए । समय बीतता गया, एक दिन निगाहीया जी का मन बहुत उदास हो गया और उन्होंने अपने पीर लखदाता जी को याद किया । लखदाता जी प्रकट हुए और निगाहीया को उदास देख कर कहा, निगाहीया तू इस बियाबान जंगल को देख के उदास न हो यहां हमारा बहुत बड़ा दरबार बनेगा और यहाँ मेले लगा करेगे, समय आयेगा और इस देश का बटवारा होगा और इस तरफ के हमारे मुरीद यहीं पर माथा टेकने, सुखना सूखने और पूरी होने पर आया करेगे । दिल न छोड़ सेवा कर और यहीं सेवा करके तुम्हारा कुष्ठ रोग समाप्त होगा । इतना कहकर लखदाता जी अलोप हो गए ।

Peer Nigaha Una - Caves made by Panch Pandvas दूसरी तरफ बेऔलाद दम्पति की फ़रियाद कबूल हुई और समय आने पर उनके घर एक बहुत ही सुंदर बेटे ने जन्म लिया । दम्पति बेटा पा कर बहुत खुश हुआ । थोड़े समय बाद दम्पति लखदाता जी का शुकराना करने के लिए उनके बड़े पीर निगाहें जाने की तैयारी करने लगा । इधर लखदाता जी ने निगाहीया जी को दर्शन दे कर कहा, पास के गॉव में हमारे मुरीद है उनके घर कोई ओलाद नहीं थी हमने उन्हें बेटे का सुख दिया है और वो अब हमारे बड़े पीर निगाहें जाने की तैयारी कर रहे है । तुम उनके घर जाओ और उन्हें समझाओ की वो सुखना का सारा सामान यहीं इस गुफा में लेकर आयें और यहीं चढ़ायें उनकी सुखना हम यहीं कबूल करेंगे । पीर जी के कहने पर निगाहीया जी उस दम्पति के घर गए और लखदाता जी का हुकम सूना दिया । लेकिन उस दम्पति ने निगाहीया जी की बात को नहीं माना उलटा उन्हें कोहड़ी कह कर बुलाया और बहुत बुरा - भला कह कर अपने घर से निकाल दिया । निगाहीया जी बहुत दुखी मन से वापिस गुफा पर आ जाते है और रोते हुए लखदाता जी को याद करते हैं । लखदाता ही प्रकट होते है और वचन करते है की निगाहीया तू अपनी परीक्षा में पास हो गया है अब तेरे सारे दुःख-दरिद्र कट जायेंगे । तू फ़िक्र न कर जिन लोगो ने तुझे बुरा-भला कहा है उनको सजा जरुर मिलेगी वो लोग यहीं पर अपनी सुखना देने आयेंगे और तुमसे माफ़ी भी मंगेगे । अब जाओ और सामने तालाब में जा कर नहाओ तुम्हारा सारा कुष्ठ रोग ठीक हो जायेगा और वापिस आकर दरबार की सेवा निभाओ । यह कह कर पीर लखदाता जी अलोप हो गए । निगाहीया जी जैसे ही तालाब से नहा कर बहार निकले, उनका सारा शरीर पहले जैसा तंदरुस्त हो गया ।

उधर दम्पति के घर उनका बेटा बीमार हो गया, उन्होंने बहुत दवा-दारु की पर कोई फायदा नहीं हुआ फिर पीर लखदाता जी के आगे फ़रियाद करने लगे । एक दिन जब बच्चे का बहुत बुरा हाल था तो उस दिन उन्हें एक आवाज सुनाई दी - "तुम लोगो ने मेरे मुरीद निगाहीया का बहुत अपमान किया है उसे कोहड़ी कह कर बुलाया और मेरे भेजे संदेशे को ठुकराया है, इसी लिए तुम लोगो को यह सजा मिली है अगर अपनी सलामती चाहते हो तो जायो और मेरे मुरीद निगाहीया से माफ़ी मांगो और मेरे बड़े पीर निगाहें जाने की बजाये यहीं उसी गुफा में अपनी सारी सुखना चढ़ाओ, और उसी गुफा की आप लोग जी-जान से सेवा करो । जाओ तुम्हारा बेटा ठीक है और जैसे हमने कहा है वैसे ही करो" ।

लखदाता जी के हुकम मुताबिक़ सारा परिवार गुफा पर गया और लखदाता जी की सुखना चढ़ा के उनका शुक्रिया अदा किया और निगाहीया जी से भी माफ़ी मांगी, और उन्हें ठीक हुआ देख बहुत खुश हुए और लखदाता जी के जयकारे लगाते हुए ख़ुशी ख़ुशी घर वापिस गए ।

तब से निगाहिया जी ने यहीं इन्हीं गुफाओं में लखदाता जी की भक्ति की और स्वर्गवास के बाद उनकी समाधि इसी गुफा में बनाई गई जिस के आप सब दर्शन करने और माथा टेकने आते हैं । हर वैसाखी के दिन इस समाधी को नहलाया जाता है और इस पर पहली चादर सैली गॉव के निगाहीया परिवार की चढ़ती है दूसरी मंदिर कमेटी की फिर बाद में बाकी सब चढ़ाते हैं ।

पीर निगाहा परिसर में बाण की चारपाई पर सोना वर्जित है, यहाँ जो भी रहते है वह चारपाई को बाण की जगह लोहे की पत्तियो से बुनते हैं लेकिन अब शायद ही किसी के पास ऐसी चारपाई होगी । यहाँ पर तेल की तलाई करना, छाछ छूलना व् गृहस्थ में रहना भी वर्जित हैं |

श्रदालुओ के लिए विशेष सुविधाएँ :-

  • ठहरने के लिए पर्याप्त मात्रा में सरायें ।
  • सोने के लिए दरीयां व् कम्बल निशुल्क दिए जाते है ।
  • नहाने के लिए दो तालाब तैयार किये जा रहे है ।
  • जहाँ श्रदालुओ को माथा टेकने के लिए लाइने लगाई जाती है वहाँ किनारो पर जगह - जगह कूलर लगाये जाएँगे ।
  • श्रदालुओ की सुरक्षा के लिए सुरक्षा गार्डो का जगह - जगह प्रबंद किया गया है ।
  • श्रदालुओ के लिए शौचालय भी उपलब्द हैं ।
  • मंदिर में गौशाला की वयवस्था भी हैं ।
  • मंदिर में श्रदालुओ के लिए लंगर पानी का विशेष प्रबंद है :-

    • लंगर का समय : सुबह ११ बजे से सांय ३ बजे तक और सांय 7 बजे से रात्रि ११ बजे तक ।
    • बाबा जी का कोई भी श्रदालु अगर लंगर की सेवा देना चाहते हो या लंगर लगाना चाहते हों तो मंदिर कमेटी से मंज़ूरी लेकर आप लंगर लगा सकते हैं ।