लखदाता जी के मुरीद - सुलेमान और भैरों जती जी
सुलेमान पैगम्बर परीयों और हाकिमों के पीर अरब की तरफ से सैर करते हुए आ रहे हैं और परीयों ने अपने पीर का दीदार किया और उनके कदमो में आ कर सलाम की । परीयों ने अपने पीर जी को पैदल जाते देखा तो उन्हों ने उन्हें
एक भेंट देते हुए कहा, हज़ूर यह मुंदरी स्वीकार करे और इसे आप पहन ले, आप को जब भी हमारी जरुरत हो, तो आप हमें याद फरमाना हम उसी वक्त आप की सेवा में हाज़िर हो जाएंगी ।
कुछ समय बीता, एक दिन सुलेमान जी ने सिंध (अब पाकिस्तान) के किनारे सैर पर जाने का मन बनाया और यहीं सोच कर उन्हों ने परीयों द्वारा दी मुंदरी निकाली और उन्हें याद किया । उसी वक़्त परीया सोने का तख़त ले कर ह
ाज़िर हुईं और सलाम करते हुए पूछा जी हुकम, तो सुलेमान जी ने कहा मुझे सिंध (अब पाकिस्तान) के किनारे की सैर करवायो । परीयों ने उसी वक़्त सुलेमान जी को सोने के तख़्त पर बिठाया और सिंध की तरफ ले कर उड़ गई ।
चलते - चलते दिल्ली के नज़दीक यमुना के किनारे एक लड़की जिस का नाम काली था, लकड़ियां बीन रही थी । लड़की की माता जी का नाम नंजी था, और वो दाने भुनने का काम करती थी यानि भठिय़ारी थी । काली के पिता जी जिन का
नाम लखीया था और वो मछलीयाँ पकड़ने का काम करते थे, यानि मछुआरे थे ।
सुलेमान जी ने लड़की की तरफ देखा और बडे गुस्से और अंहकार के साथ बड़े कठोर शबद कहे,
" इतनी काली और गन्दी लड़की जिसके शरीर से इतनी बदबू आ रही है, देखने में कितनी बदशक्ल है यह लड़की किसी के मन को कैसे भा सकती है,
कौन इस से शादी करेगा और कोन इस के हाथों का पका खाना खायेगा , कोई जानवर ही इस से शादी कर सकता है इंसान तो नहीं करेगा । बस इतना कहते ही भगवान् की क्या मर्ज़ी हुई, एकदम सुलेमान जी को प्यास लगी और उन्हों
ने परीयों से कहा तख़त नीचे यमुना के किनारे उतरो मुझे बहुत प्यास लगी है । परीयों ने तख़त यमुना के किनारे उतार और सुलेमान पानी पीने के लिए किनारे पर गए जैसे ही सुलेमान ने अपने दोनों हाथ पानी पीने के लिये यमुना में डाले तो
उसी वक़्त हाथ में पहनी मुंदरी निकल कर पानी में गिर गई, जैसे ही उंगली से मुंदरी पानी में गिरी उसी वक़्त एक मछली उसे निगल गई और पानी में कही अलोप हो गई जैसे ही परीयों ने देखा मुंदरी नहीं है उन्हों ने सुलेमान जी को वहीं
छोड़ा और तखत ले कर वापिस उड़ गई । शाम बीत गई सुलेमान वही अपनी मुंदरी ढून्ढ रहे थे पर मुंदरी उन्हें नहीं मिली वो तो मछली निगल गई थी, शाम हो चुकी थी ठण्ड भी बढ़ने लगी थी और सुलेमान जी को भूख भी जोरो की लग चुकी
थी आखिर में उन्हों ने शहर की तरफ जाने का मन बनाया और वो शहर की तरफ निकल पड़े । रास्ते में एक औरत भठी पर दाने भून रही थी सुलेमान जी वहाँ रुके और उस औरत के पास बैठ गए । जो दाने कड़ाही से उछल - उछल
कर कड़ाही से बहार गिर रहे थे सुलेमान उन्हें उठा - उठा कर खाने लगे । भठिय़ारी ने ये सब देखा और उस ने सुलेमान जी से कहा बेटा अगर दाने खाने हैं तो भठी में बालन डालो मैं दाने भून देती हूँ निचे से उठा के मत खाओ,
सुलेमान जी भठी में बालन डालने लगे । सुलेमान भठी में बालन डालते रहे और दाने खाते रहे । रात पड़ने वाली थी जब भठिय़ारी अपनी कड़ाही उठा के अपने घर की तरफ चलने लगी तो सुलेमान जी ने हाथ जोड कर उस भठिय़ारी से
कहा मेरे पास रहने की कोई जगह नहीं है मुझे अपने घर में पनाह दे दो मैं कोई भी काम कर सकता हूँ या यूं कहो जो कहो गे मैं वही काम करूगा । उस ने कहा ठीक है चलो, सुलेमान उस के साथ उस भठिय़ारी के घर रहने लगे जो
वो काम कहते सुलेमान जी चुप - चाप कर देते ।
अब सुलेमान जी को उस भठिय़ारी के घर पर रहते काफी समय बीत गया तो एक दिन नंजी भठिय़ारी अपने पति लखीया से सलाह करती है कि हम अपनी बेटी काली का यहाँ भी रिश्ता करते है रिश्ता तो हो जाता है पर जब वो इस
की सूरत देखते है तो रिश्ता तोड़ देते है क्यों न हम उस की शादी की बात इस लड़के से करे जो अपने घर पर रहता है, उस के पति ने कहा ठीक है तू उससे पूछ ले ।
कुछ दिन ऐसे ही बीत गए एक दिन भठिय़ारी नंजी ने सुलेमान जी से अपनी लड़की काली की शादी की बात की, तो उसी वक़्त सुलेमान जी को काली के प्रति कहे अपने शबद याद आ गये और मन ही मन विचार आया की भगवान् ने
मेरा अंहकार तोड़ दिया, जो शबद मैंने काली को पहली बार देख कर इतने अंहकार से कहे थे वही शब्दो के कारण मेरी यह दशा हुई है, दूसरी तरफ रहने का कोई और ठीकाना नहीं हैं, अगर शादी नहीं की तो घर छोड़ना पड़ेगा यही सोच
कर सुलेमान जी ने शादी के लिए हाँ कर दी ।
जिस काली को कभी बहुत बुरा - भला कहा था आज उसी काली के हाथ का पका खाना बड़े शोंक और आनंद से सुलेमान खा रहे है और खुदा का शुक्र कर अपना वक़्त निकाल रहे है । इस तरह काली के साथ सुलेमान को रहते कई
साल बीत गये । हर रोज़ की तरह एक दिन सुलेमान जी का ससुर लखीया मछलीयाँ पकड़ कर लाया, सारी मछलीयाँ बिक गई पर एक मछली बच गई जिसे वो घर ले आया । जैसे ही काली ने उस मछली को बनाने के लिए उसे काटा तो उस
मछली के पेट से एक मुंदरी निकली ये वही मुंदरी थी जो परीयों ने सुलेमान जी को दी थी । काली मुंदरी को ले कर अपने पति सुलेमान के पास गई और बोली जरा देखना यह मुंदरी मछली के पेट से निकली है सुलेमान ने मुंदरी को पहचान
लिया और काली से मुंदरी ले कर कहा कुछ नहीं यह सधारण सी मुंदरी है आप जाओ और मछली पकाओ सुलेमान ने वो मुंदरी काली से ले ली और मन ही मन कहने लगा ओ मुंदरी तेरे में कितनी ताक़त है जब तू मेरे पास थी तो परीयाँ
मेरा साथ देती थी मेरी बात मानती थी मेरी जी हज़ूरी करती थी और जब तू मुझ से दूर चली गई तो परीयाँ भी मुझे छोड़ कर चली गई, खुद की कुदरत को सलाम किया । सुलेमान जी ने मुंदरी को धोया, साफ़ किया धुप बत्ती की और
परीयों को याद किया । परीयाँ फिर सुलेमान के कदमो में हाज़िर हो गई और बोली पीर जी हम आप को यहाँ से लेने आई है, चलो चले ।
सुलेमान ने कहा मैं आप के साथ बिलकुल नहीं जाऊंगा तुम्हारे अंदर कोई ताक़त नहीं है जो ताक़त है वो इस मुंदरी में है, परीयों ने कहा हज़ूर ऐसा मत कहो हम आप को यहाँ से लेने के वास्ते आईं है हम आप को लेकर ही जाएंगी हम आप
को छोड़ कर नहीं जा सकती । सुलेमान जी ने कहा मैं अकेले नहीं जाऊंगा अगर जाऊंगा तो काली को साथ ले कर ही जाऊंगा । परीयों ने कहा नहीं पीर जी काली नहीं जा सकती, हाँ एक काम हो सकता है वो ये की काली को कोई भी
वरदान दे सकते हो जो समय आने पर पूरा होगा ।
सुलेमान, मछली पकाती काली के पास गए और कहा, काली मैं कहीं बाहर जा रहा हूँ, इतना सुनते ही काली ने आँखे भर ली और पुछा हज़ूर दो चार दिन में वापिस आ जाओगे, सुलेमान ने जवाब दिया यहाँ मुझे कोई काम नहीं है घर में
ऐसे ही खाली बैठा रहता हूँ सोचा कोई अच्छा सा काम खोलते है । 6 महीने के लिए बाहर जा रहा हूँ, इतना सुनते ही काली रोने लगी और बहुत निराश हो गई । काली के लाख मना करने पर भी जब सुलेमान न रुके तब काली ने कहा
हज़ूर आपका रहना जरुरी था क्योंके मैं आप के बच्चे की माँ बनने वाली हूँ, यह सुन कर सुलेमान बहुत खुश हुए और उन्हों ने काली को वरदान दिया, काली, तेरे जुड़वाँ लड़के पैदा होंगे जो बहुत बलवान और योद्धे होंगे जिन्हे सारी दुनिया
माने गी रहती दुनिया तक तेरा भी नाम होगा यह कह कर सुलेमान वहाँ से चले गए ।
सुलेमान जी के जाने के बाद काली के जुड़वाँ लड़के पैदा हुए एक का नाम भैरों जती और दूसरे का नाम जती मकाल रखा गया । समय बीता दोनों लड़के बड़े होने लगे, थोडा समय बाद, जती मकाल ने अगन देवता की पूजा करनी शुरू कर
दी और भैरों जती ने देवताओं की । धीरे - धीरे दोनों नौंजवान हो गए, एक दिन भैरों जती जी कहीं पैदल चले जा रहे थे । स्यालकोट के पास एक गॉंव है सोधरा, वहाँ एक अहमद लुहार नाम का जादूगर रहता था । उसकी नज़र भैरों
जती पर पड़ी तो अहमद जादूगर ने अपने जादू से भैरों जती को बाँध लिया और अपने घर ले गया । जादू के जरिये वो भैरों जती से सारा दिन अपने काम करवाता । एक दिन बहुत परेशान हो कर भैरों जती ने भगवान् के आगे फ़रियाद
की, ओह दुनिया के मालिक कोई ऐसा पीर फ़क़ीर कोई ऐसा रेहबर भेज जो मुझे इस जादूगर की क़ैद से छुड़ा ले जाये तो मैं साड़ी जिंदगी उसकी सेवा करू गा । इधर भैरों जती ने फ़रियाद की और उधर पीर सखी सर्वर जी ,लखदाता जी
पृथ्वी की सैर करते - करते उसी गॉव सोधरे आ पहुंचे । पीर लखदाता जी तो जानी जान है उन्होंने जादूगर अहमद से भैरों जती को छोड़ने के लिए कहा । अहमद इस बात से मुकर गया की भैरों जती उसकी क़ैद में हैं । दुनिया के मालिक
लखदाता जी से कोई कैसे झूठ बोल सकता है या उनकी नज़र से कोई कैसे बच सकता है । लखदाता जी ने अहमद जादूगर से कहा, अहमद तू झूठ बोल रहा है वो देख सामने हमारी कक्की घोड़ी भैरों जती को लेकर आ रही है, यह देख कर
जादूगर अहमद और शहरवासी हक्के - बक्के रह गये । जादूगर अहमद पीर लखदाता जी के क़दमों में गिर पड़ा और माफ़ी मांगने लगा, पीर लखदाता जी ने जादूगर अहमद को कहा माफ़ हम तुझे तभी करेंगे अगर तू हमें वचन दे की
आज के बाद तू किसी के साथ भी जादू का खेल नहीं खेले गा और न ही जादू करेगा, किसी के साथ जुलम नहीं करेगा । अहमद ने लखदाता जी को वचन दिया, दाता जी आज के बाद मैं कभी भी, किसी के साथ भी ऐसा नहीं करूंगा ।
लखदाता जी ने कहा तो फिर जा हमने तुझे माफ़ किया और आज से अहमद - शाह हो गया और आज से इस जगह पर हमारे नाम का मेला लगा करेगा अब हम जा रहे हैं, जब लखदाता जी उठ कर चलने लगे तो भैरों जती ने हाथ जोड़
कर लखदाता जी से फ़रियाद की, दाता जी मैंने अपने मन अंदर यह बात कही थी की अगर इस जादूगर की क़ैद से मुझे जो भी छुड़ाए गा मैं सारी उम्र उस की सेवा करूंगा और उसके कदमो में रहूँगा अब आप मुझे सेवा का मौका दे ।
इतना सुनने के बाद लखदाता जी ने कहा ठीक है अगर ये बात है तो भैरों आजा हमारे साथ आज से तू हमारे दरबार का अगवान हुआ और दाता जी भैरों को अपने साथ ले आये और अपने दरबार का अगवान बना लिया ।
आज दुनिया में जहाँ भी लखदाता जी की पूजा होती है तो भैरों जती की पूजा साथ में होती है, हर शहर में, हर गॉव में, हर घर में जहाँ भी लखदाता जी का दरबार है वहाँ भैरों जती का भी साथ बना हैं और आज सारी दुनिया,
जय जय कार कर रही है ।