लखदाता जी की मुरीद दानी जट्टी
लाधेकी गाँव में रहने वाली दानी जट्टी जिस के माँ बाप पीर लखदाता जी के मुरीद थे । वो जब भी लखदाता जी के दरबार जाते तो अपनी बेटी दानी को हमेशा साथ ले जाते, दानी जट्टी का अपने पीर लखदाता जी
में विश्वास दिन प्रतिदिन बढ़ता गया । जब दानी जट्टी शादी के लायक हुई तो उसके माँ बाप ने उसकी शादी गॉव धोलेकी के उजागर सिंह के साथ कर दी । उस के ससुराल वाले पीर लखदाता जी को नहीं
मानते थे । अब दानी जट्टी पीर लखदाता जी को याद करती हैं उनको माथा टेकती है उनकी निआज़ चढ़ाती है, चूरमा बांटती है, कनक के रोड़े बांटती है । परन्तु उस का पति उजागर सिंह और ससुराल वाले उसे रोकते है और
गुस्सा होते है की तू मुसलमान की पूजा मत कर, यहाँ हम जाते है जिस की हम पूजा करते हैं तू भी उनको मान उन्ही की पूजा कर । दानी जट्टी ने बड़े प्यार से अपने ससुराल वालो को जवाब दिया की मैं सभी गुरु पिरो
का सत्कार करती हूँ पर मेरा मेरे पीर लखदाता जी में अटूट विश्वास है उनके इलावा में किसी को अपना गुरु पीर नहीं मान सकती । दानी जट्टी के ससुराल वाले इस बात से बहुत खफा हुए, उन्हों ने उसे बहुत तंग करना
शुरू कर दिया ।
एक दिन दानी जट्टी अपने घर के बरामदे में झाड़ू लगा रही थी तो पीर लखदाता जी ने एक चमत्कार रचा, एक तन्दीरा (गले में पहना जाने वाला शिंगार एक तरह का हार) जो की बरामदे में पड़ा था । दानी ने अपनी सास को
आवाज लगाई की बेबे जी यह गले का हार पता नहीं किस का है यहाँ बरामदे में पड़ा है इतना सुनते ही दानी की सास भागी हुई बरामदे में आई और दानी को कहने लगी की तूने ये तन्दीरा कहा से चुराया है, यह तो मेरे मायके
वालो ने मुझे दहेज में दिया था, तूने इसे क्यों चुराया । दानी जट्टी ने कहा बेबे जी मैंने इसे नहीं चुराया मैं तो झाड़ू लगा रही थी तो मैंने इसे बरामदे में पड़ा देखा । दानी की सास ने कहा ला दे मुझे मेरा तन्दीरा मैं आज इसे
गले में पहन के देख लू सारी जिंदगी तो मैंने इसे पहना नहीं । जब दानी की सास ने तंदीरे को गले में पहना तो लखदाता जी ने ऐसी लीला रची की वो तन्दीरा सांप बन गया, दानी की सास शोर मचाने लगी, उस की चीखे सुन
कर सारा परिवार और आस पड़ोस के लोग इकट्ठे हो गय़े सारे भगवान् को याद करने लगे तो आखिर मैं दानी जट्टी की सास दानी को कहने लगे की दानी अपने पीर लखदाता जी को याद कर शायद वो मेरी रक्षा करे । असल में यह
तन्दीरा मेरा नहीं था इतना सुनते ही दानी ने कहा बेबे अगर तेरा कसूर है और तू अपना कसूर मानती हैं तो तू खुद पीर लखदाता जी को याद कर शायद तू बच जाये । दानी की सास रो - रो कर पीर लखदाता जी को याद करने लगी,
दानी अपनी सास को रोता विखलता देख बहुत व्याकुल हो गई और उसने पीर लखदाता जी के आगे फरियाद करने लगी । यह खेल तो पीर लखदाता जी का ही रचा हुआ था, तभी उनकी रेहमत हुई और दानी की सास के गले में न सांप
रहा न तन्दीरा, इतना देख सभी लोग हैरान ही गए । इस तरह लोग दानी को बहुत अच्छी समझने लगे और दानी की सास ने भी कहा दानी तूने मेरी जान बचा ली मैं तेरा शुक्रिया कैसे करू, तू बहुत अच्छी हैं ।
दानी की सास दानी को ऊपर - ऊपर से अच्छा कहती पर दिल से उसे बुरा ही समझती थी । दानी के ससुराल वाले दानी को जादूगरनी कहने लगे उसे बहुत बुरा भला बोलते उसे बेऔलाद कहते और बहुत जलील करते । एक दिन तंग आ के
दानी मूर्दघाट जा के बैठ गई और पीर लखदाता जी को याद करने लगी और कहने लगी हे मेरी सची सरकार मेरे पीर लखदाता जी यहाँ तो लोग मरने के बाद आते हैं मैं तो जीते जी आ गई हूँ, हो सके तो मुझे इस जन्म से छुटकारा दे दो ।
उसकी फरियाद सुन कर पीर लखदाता जी प्रगट हुऐ ।ओर उन्हों ने दानी से पूछा क्या बात है दानी तुझे क्या चाहीए, दानी पहले पीर जी को देख के थोरा घबरा सी गई फिर संभल गई, पहले पीर लखदाता जी को सलाम की फिर रोने लगी
और फरियाद करने लगी की पीर जी मैं बहुत दुःखी हूँ सारी दुनिआ मेरे पीछे पड़ गई है मेरे ससुराल वाले भी मुझे बहुत बुरा भला बोलते हैं मैं बहुत दुःखी हूँ , मेरे पे मेहर करो, या तो मुझे मौत दे दो या फिर एक लाल (बेटा) दे दो ।
पीर लखदाता जी ने दानी को कहा दानी हम तेरी श्रद्धा से बहुत प्रसन्न हैं और खुश हो के वरदान देते हैं की तेरे एक लाल (पुत्र) पैदा होगा मगर उस के जन्म के बाद हमारे नाम की ढोल वाले भराई को बुला के टाहर दे देना और हमारे
बड़े पीर निगाहे (अब पाकिस्तान में) पुत्र का माथा टिकाने वास्ते जरुर ले के आना ।
दानी ने कहा ठीक है पीर जी मैं जरुर सजदा करने आऊंगी और ख़ुशी - ख़ुशी घर वापिस चली गई । समय बीता और दानी के बहुत ही सुंदर पुत्र का जन्म हुआ और उस ने अपने सास ससुर को बोला की हमें बड़े पीर निगाहे लखदाता जी के माथा टेकने और उनका शुक्रीया अदा करने जाना है, दानी के ससुराल वाले नही माने और कहा यहाँ हम जाते है जिन को हम मानते है वहीं जाना है और कही नहीं जाना, घर में लड़ाई हुई सभी नाराज़ हुए थोडा समय बीता तो दानी ने अपने पति उजागर सिंह को साफ़ - साफ़ कहा, इन्हों ने तो ऐसे ही करते रहना है मेहरबानी करके आप बताओ आप कब हमें बड़े पीर निगाहे ले कर चलोगे और जब जायेंगे तब साथ में पीर लखदाता जी का झंडा और दाता जी का चूरमा घर से ले कर सलाम करने जाएँगे और मेहरबानी करके मुझे ये भी बताओ पीर जी के भेंट क्या चढ़ानी है । दानी के पति उजागर सिंह के मुहं से एकदम निकला, २१ मोहरे चढ़ा देंगे । समय आया सब तैयारी की गई पीर लखदाता जी का झंडा उनका चूरमा तैयार किया गया जब जाने लगे तो दानी की
सास ने उजागर सिंह अपने बेटे को धीरे से अंदर बुला के बोला की बेटा २१ मोहरे चढ़ाने की क्या जरुरत है तू दानी को मत बताना और धीरे से ७ मोहरे चढ़ा देना । दानी अपने बेटे और पति के साथ बड़ी ख़ुशी - ख़ुशी निगाहे की तरफ चल पड़ी मन में बहुत ख़ुशी थी की में अपने पीर लखदाता जी का शुक्रिया करने जा रही हूँ पर उसे क्या पता था की उसके पति के मन में तो चालाकी, मैल और धोखा
हैं । चलते - चलते जब वो निगाहे से थोडा दूर रह गए तो अचानक दानी को महसूस हुआ के बच्चा कुछ हिलजुल नहीं रहा जब दानी ने ध्यान से बच्चे को देखा तो दानी घबरा गई उसने देखा की बच्चे की तो मौत हो गई हैं । दानी कुछ नहीं बोली बस पीर लखदाता जी का नाम मन ही मन ध्याते हुऐ चलने लगी । तभी दानी के पति ने दानी से कहा दानी तू थक गई होगी ला बच्चा मुझे पकड़ा दे थोड़ी देर मैं उठा लेता हूँ । दानी ने कहा नहीं में ठीक हूँ कोई बात नही आप चलो, पकड़ाती कैसे क्योंकी बेटे की तो मौत हो चुकी थी और उसे डर था की उसका पति उसके पीर लखदाता जी को बुरा भला बोलेगा और कहेगा की तेरे पीर ने लाल देना ही था तो फिर छिना क्यों । इसी कश्मकश में वो निगाहे पहुँच गए । दानी के पति के मन में चालाकी थी उसने सोचा की अगर मैं दानी के साथ माथा टेकने गया तो मुझे २१ मोहरे चढ़ानी पड़ेंगी पर माँ की सीख थी की वहाँ कौन सा किसी को पता चलना है उसे तो ७ मोहरे चढ़ानी थी यही सोच कर दानी के पति ने दानी से कहा की तू बेटे के साथ यहाँ बैठ, पहले मैं माथा टेक आता हूँ फिर बाद में तू चली जाना । दानी का पति पीर लखदाता जी का झंडा ले के दरबार के अंदर गया और झंडा चढ़ाया और १४ मोहरे जेब में ही रख के ७ मोहरे चढ़ा दी और मन में विचार आया की पीर जी कौन सा देख रहे है और माथा टेक के दरबार से बहार आ गया और दानी से कहने लगा की दानी मैंने तो माथा टेक लिया अब तू जा और बेटे के साथ माथा टेक आ, दानी जब अपने बेटे को ले कर दरबार के अंदर गई और जैसे ही उसने मजार की तरफ देखा तो आँखों से आंसू आ गए और दानी फूट - फूट कर रोने लगी और फरियाद करने लगी दाता जी आप ने खुद लाल दे के खुद ही वापिस छिन लीया, ऐसे आप ने मेरे साथ क्यूँ किया कहते - कहते अपना बेटा मजार के साथ लेटा दिया और रोये जा रही है तभी दानी को आकाशवाणी सुनाई दी - दानी हम लाल दे के वापिस नहीं लेते थोडा सब्र कर तेरा बेटा मरा नहीं वो जिन्दा है, पर तेरे पति ने हमारे साथ धोखा किया है उसने २१ मोहरे सुख कर चढ़ाई सिर्फ ७ दानी तू घबरा नहीं जा जा के अपने पति से पूछ ले की कितनी मोहरे सुखी थी और चढाई कितनी । दानी अकेले दरबार से बाहर आई तो उसे अकेले देख उसके पति ने पुछा, दानी तू अकेले आई है बेटा साथ नहीं ले के आई तो दानी ने कहा उसे तो पीर लखदाता जी ने १४ मोहरों में रख लिया इतना सुनते ही उजागर सिंह पूरी तरह घबरा गया फिर संभल कर और बात छुपाते हुये कहा दानी मैं समझा नहीं तू क्या कह रही है तो दानी ने कहा आप ने २१ मोहरे सुखी और चढाई कितनी सिर्फ ७, अगर बेटा चाहिए तो मेहरबानी करके जाओ और पीर लखदाता जी से माफ़ी मांगो । मेरे पीर लखदाता जी सच्चे है परन्तु आप और आप का सारा परिवार झूठा है ।
इतना सुनते ही दानी के पति के होश उड़ गए और वो पागलों की तरह दरबार की तरफ भागा और चीख़ते चिलाते हुऐ दरबार के अंदर गया और जाते ही बाकी की सारी मोहरें मजार पर चढ़ा दी और रोने - बिलखने लगा और बार - बार दाता जी से नाक रगड़ते हुऐ माफ़ी मांगने लगा । साथ में दानी भी रो रही है, उन दोनों की चीख पुकार और फरियाद सुन कर पीर लखदाता जी ने लड़के को ज़िंदा कर दिया और फिर से आकाशवाणी हुई, दानी जा और इस लड़के का नाम परागा रख दे, इस बच्चे का नाम दुनिया में रोशन होगा । रहती दुनिया तक तेरा और इस का नाम रोशन रहेगा ।
दानी ने बच्चे को उठा के छाती से लगाया और अपने गुरु अपने पीर लखदाता जी का बार- बार शुक्रिया अदा किया । उसके बाद तीनों जने दानी जट्टी उस का पति उजागर सिंह अपने बेटे परागा को ले के ख़ुशी - ख़ुशी घर वापिस आ गये ।