लखदाता जी के मुरीद - शेख सनान

मुल्तान शहर में एक फ़क़ीर रहते थे शेख सनान । शेख सनान जी बब्बर शेर की सवारी करते थे और हाथ में नाग का चाबुक रखते थे । शेख सनान जी ने जंगलों में 72 साल बहुत कठोर भक्ति की, जब भगवान की दरगाह में शेख सनान जी की भक्ति कबुल हुई तो शेख सनान जी को एक आवाज सुनाई दी की शेख सनान आप की भक्ति पूरी हो चुकी है आप को सचखंड में अभी नहीं बुलाया जा सकता क्योंकि आप का कोई गुरु नहीं है जाओ और पहले कोई पूर्ण गुरु से गुरु दक्षिणा लो फिर आप की भक्ति पूर्ण होगी और फिर आप को सचखंड में बुलाया जायेगा | शेख सनान जी ने अपनी आलोकिक शक्ति से सारे ब्रह्माण्ड में निगाह मार कर देखा पर उन्हें कोई पूर्ण गुरु दिखाई नहीं दिया, लेकिन खुदा का हुकम मान कर उठे और हाथ में नाग का चाबुक पकड़ और अपने शेर पर सवार हो पूर्ण गुरु की खोज में निकल पड़े ।

दूसरी तरफ पीर लखदाता जी अपने दरबार निगाहे में बैठे थे । उन्होंने अपने एक मुरीद को आवाज दी कर हुकम किया की पूर्व की तरफ जाओ और एक मेहमान आ रहा है उसे इज्जत के साथ यहाँ दरबार पर ले कर आओ और उन्हें खाना खाने और एक रात यहाँ रुकने के लिए कहो । लखदाता जी का हुकम मान कर सेवादार पूर्व की तरफ चल पड़े । वहां जा कर उन्होंने किया देखा की एक बजुर्ग हाथ में नाग पकडे और बब्बर शेर पर बैठा उनकी तरफ आ रहा है । सेवादारों ने उन्हें बड़ी निम्रता के साथ रोका और लखदाता जी हुकम सुनाया और साथ चलने के लिया कहा, शेख सनान जी ने बात मान ली और सेवादारों के साथ बड़े पीर निगाहे दरबार पर आ गये ।

शेख सनान जी की कठोर भक्ति के कारण उनका भोजन अर्शों से आता था और इस बात का शेख सनान जी को बहुत घमंड भी था । अपनी भक्ति के नशे में चूर शेख सनान जी ने निगाहे पहुँच कर अपने शेर पर बैठे ही लखदाता जी से हाथ मिलाया और सेवादारों से हँसते हुए कहा लो मेरा शेर पकड़ लो तो सेवादारों ने हाथ जोड़ कर कहा शेख जी हमें शेर से डर लगता है आप खुद ही अपने शेर को पिंजरे में डाल दीजिये । शेख सनान जी बहुत मशकरी हंसी हँसे और खुद ही अपने शेर को पिंजरे में डाल दिया और नाग को एक पटारी में बंद कर दिया । निगाहे दरबार में दो पलंग लगे हुए थे एक पर लखदाता जी बैठ गए और दूसरे पर शेख सनान जी । खाने का वक्त हो चूका था एक सेवादार ने शेख सनान जी से भोजन खाने का आग्रह किया तो घमंडी शेख सनान जी ने कहा मेरा खाना तो अर्शों से आता है मुझे तो वही खाना मंगवा के दो, तो जानी - जान लखदाता जी ने अपने हाथ ऊपर की तरफ करके फरियाद की और अर्शों से भोजन से सजी - सजाई एक थाली आ गई । शेख सनान जी ने भोजन किया और महसूस किया की आज की थाली का भोजन पहले की थालिओं से ज्यादा स्वादिष्ट है और मन ही मन लखदाता जी की शक्ति से हैरान हुये । थोड़ी देर बाद शेख सनान जी ने कहा की मेरे शेर को ताजा मांस और मेरे नाग को दूध दिया जाये । लखदाता जी ने अपने एक सेवादार को हुकम किया की शेख जी की इच्छा पूरी की जाये । सेवादार तरुंत गायों के बाड़े में गया और एक छोटी बच्च्ड़ी को ले कर लखदाता जी के सामने ले आया, बच्च्ड़ी ने लखदाता जी को सलाम किया । लखदाता जी ने बच्च्ड़ी को थापना दी और हुकम दिया की जाओ और शेख जी के बब्बर शेर का भोजन बनो । साथ ही सेवादार ने कपिला गाय का दूध एक कटोरे में डाल कर नाग की पटारी में रख दिया, और इस के बाद सभी आराम करने लगे ।

सुबह हुई तो शेख सनान जी मन ही मन सोचते है की जितनी तारीफ़ लखदाता जी की सुनी थी उतनी बात है नहीं, मेरी इबादत तो इनसे कहीं ज्यादा है, पूर्ण गुरु ढूंढने के लिए अभी और आगे जाना होगा, यहीं सोच कर शेख सनान जी आगे जाने की तैयारी करने लगे । फिर उन्होंने लखदाता जी से जाने की इजाजत मांगी और बाहर आकर देखा की पिंजरे में उनका बब्बर शेर ही नहीं है और रात वाली बच्च्ड़ी बैठी हुई है और आराम से जुगाली कर रही है । यह देख कर शेख सनान जी घबरा गए और फिर गुस्से से बोले आप लोगो ने मेरा बब्बर शेर गायब कर दिया यह आप लोगो के लिए ठीक बात नहीं है हमें हमारा बब्बर शेर और नाग दोनों वापिस करो अभी और इसी वक्त नहीं तो मेरे से बुरा और कोई नहीं होगा । यह सुन कर लखदाता जी हंस पड़े और बोले शेख जी आप के शेर और नाग का हमने क्या करना हम तो खुदा की बंदगी करने वाले लोग है हमें इन चीजों की जरुरत नहीं है और न ही इन का कोई लोभ, आप को आप का शेर और नाग दोनों जरूर मिल जायेंगे ।

लखदाता जी के हुकम से एक सेवादार ने पिंजरे से बच्च्ड़ी को बाहर निकाला और साथ ही नाग की पटारी भी लखदाता जी के पास ले आया । शेख सनान जी और दरबार में माजूद सारी संगत ने देखा की शेख जी का नाग दूध की पटारी में मरा पड़ा है । यह देख कर शेख सनान को बहुत गुस्सा आ गया और लखदाता जी से कहा की आप बेईमान हो आप ने मेरा सांप मार दिया है और मेरा शेर चोरी कर लिया है । लखदाता जी हंस पड़े और बच्च्ड़ी की और इशारा करते हुए बच्च्ड़ी को हुकम किया की शेख जी का शेर वापिस करो, बच्च्ड़ी ने हुकम मानते हुए बहुत बड़ा रूप धारण कर लिया और अपने पेट से शेर को बहार निकाल कर फैंक दिया । शेर ने लखदाता जी को सलाम की और एक तरफ खड़ा हो गया, फिर लखदाता जी ने दूध के कटोरे से सांप को बहार निकाला और बड़े प्यार से नाग पर हाथ फेरते हुए कहा की अरे यह तो जिन्दा है और नाग जिन्दा हो गया, नाग को जिन्दा देख दरबार में माजूद सारी संगत लखदाता जी की जय - जयकार करने लगी और शेख सनान जी बहुत शर्मिंदा हुए । लखदाता जी से इजाजत ले कर शेख सनान अपने बब्बर शेर पर सवार हो और हाथ में नाग पकड़ अपने रास्ते चल पड़े ।

शेख सनान जी निगाहे से चल पड़े और चलते - चलते मुल्तान शहर से बाहर की तरफ आ गये । शहर के बाहर सैन बादशाह ने लंगर लगाया हुआ था शेख जी को आता देख उन्होंने शेख सनान जी से भोजन करने की विनती की, शेख सनान जी तो पहले से ही गुस्से से भरे पड़े थे, उन्होंने बादशाह से बहुत गुस्से और अहंकार से कहा तुम लोग मुझे क्या भोजन खिलाओगे मेरा भोजन तो अर्शों से आता है, और देखो मेरी करामात और मेरी शक्ति यह कह कर शेख सनान जी ने अपना नाग बादशाह के बेटे की तरफ छोड़ दिया और नाग ने बादशाह के बेटे को डस लिया और बादशाह के बेटे की उसी वक्त मृत्यु हो गई । रंग में भंग पड़ गई, खुशीआं गमिओं में तब्दील हो गईं और सभी रोने - चिल्लाने लगे | बादशाह और उस की रानी का रो-रो कर बुरा हाल हो गया । शेख सनान जी को अपनी भक्ति और शक्ति पर बहुत घमंड था की लड़के के मर जाने के बाद सभी मेरी मिन्नतें करेंगे और फिर मैं बादशाह के बेटे को अपनी शक्ति से जिन्दा कर दूंगा और इस तरह सभी मेरी जय-जयकार करेंगे और लखदाता जी के सामने हुई बेइज्जती का बदला भी पूरा हो जायेगा और साथ में इन लोगों को भी पता लग जायेगा की कौन ज्यादा शक्तिशाली है । सभी तरफ लोग रो रहे थे और शेख सनान जी अपने शेर पर बैठे सारा नज़ारा देख रहे थे और मंद - मंद मुस्करा रहे थे । दूसरी तरफ बादशाह और उसकी रानी अपने मरे हुए बेटे को गले लगा कर विरलाप कर रहे थे ।

थोड़ा संभल कर बादशाह और रानी ने शेख सनान जी के पैर पकड़ लिए और मिन्नतें करने लगे की वो उनके बेटे को फिर से जिन्दा करदे और वादा किया की परिवार समेत वो उनके मुरीद बन जायेंगे जैसा वो कहेंगे वो लोग वैसा ही करेंगे । यह सुन कर शेख सनान जी ने कहा ठीक है और फिर उन्होंने अपने खुदा से फरियाद की और बहुत जोर लगाया, अपनी सारी शक्ति का इस्तेमाल किया पर खुदा की रहमत नहीं हुई, बादशाह का बीटा जिन्दा नहीं हुआ, क्योंकि अहंकार हमेशा टूटता है, झूठ की कभी जीत नहीं होती । आखिरकार शेख सनान जी भी मायूस हो कर एक तरफ बैठ गए और सोचने लगे की यह मैंने क्या कर दिया अपने अहंकार के कारण और अपनी जिद में मैंने एक बच्चे को मार दिया, इस में मेरी बहुत बेइज्जती है और लोग मुझे मार देंगे अब मैं किया करूँ ।इतने में एक भद्र पुरष ने लखदाता जी की बात की और कहा की वह बादशाह के बेटे को जिन्दा कर सकते है । बादशाह ने उसी वक्त पीर लखदाता जी को लेकर आने के लिए अपने कुछ सेवक उनके दरबार की तरफ भेज दिए और आदर के साथ उनको वहां लाने के लिए कहा । लखदाता जी तो जानी -जान है, लखदाता जी उसी जगह पहुँच गए और आते ही उन्होंने फरियाद की और बादशाह के बेटे को आवाज लगाई "उठो बेटा अभी तुम्हारे जाने का वक्त नहीं आया है, अभी तो तुम्हें बहुत सारे काम करने है " लखदाता जी की आवाज सुनते ही बादशाह का बेटा उठ कर खड़ा हो गया उठते ही उसने लखदाता जी को सलाम की और यह देख सभी तरफ खुशिओं की लहरें दौड़ पड़ी । यह करिश्मा देख वहां उपस्थित सभी लोग लखदाता जी की जय-जयकार करने लगे और शेख सनान जी शर्मिंदगी से अपना सिर नहीं उठा पा रहे थे और सोचने लगे की उनकी भक्ति किसी काम की नहीं रही । खुदा के हुकम मुताबिक अगर कोई मेरा गुरु हो सकता है तो वो सिर्फ पीर लखदाता जी ही हो सकते हैं और इनके चरणों में ही मेरी इबादत पूरी होगी । अभी वो ऐसा सोच ही रहे थे की उन्होंने देखा की बादशाह, उसकी रानी उनका बेटा और सारी संगत लखदाता जी के पीछे - पीछे निगाहे दरबार की तरफ चल पड़े । शर्मिंदगी में डूबे शेख सनान जी भी उन लोगों के पीछे-पीछे चलने लगे और दरबार पर पहुँच गये । बादशाह, रानी और उनके बेटे ने लखदाता जी के चरणों में सलाम की और उनका कोटि-कोटि धन्यवाद किया और लखदाता जी की जय - जयकार करने लगे ।

लखदाता जी की सच्ची इबादत देख और लोगों का उनके प्रति विश्वास और प्यार भावना देख कर शेख सनान जी पूरी तरह कायल हो गए और उन्होंने मन बना लिया की बाकी की जितनी भी जिंदगी बची है वो लखदाता जी के चरणों में इसी दरबार में सेवा करके बितायेंगे, अपने मन का यह फैसला उन्होंने सारी संगत के सामने लखदाता जी के चरणों में रख दिया और हाथ जोड़कर लखदाता जी के चरणों में गिर पड़े और अपनी गलतिओं की माफ़ी मांगने लगे । लखदाता जी ने शेख सनान जी को माफ़ कर दिया और अपना मुरीद बना लिया ।

शेख सनान जी उसी दिन से लखदाता जी के मुरीद हो गए और अपने आखरी समय तक बड़े पीर निगाहे दरबार पर सेवा निभाई और अंत में पूर्ण गुरु की शरण में आने से उन्हें सचखंड की प्राप्ति हुई ।